Upadeshamrut - Hindi
Upadeshamrut - Hindi
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सद्. गुणातितानंद स्वामी की बातों यह प्रथम आवृत्ति हिन्दी भाषामें “स्वामी के उपदेशामृत” नामसे श्री स्वामिनारायण गुरुकुलकी द्वारा 2017 में भावांजलि महोत्सव के उपलक्ष में प्रसिद्ध हो रही है ।
भगवान श्रीस्वामिनारायण के आदेशानुसार ‘प्रवर्तनिया सद्विधा...’ इस संप्रदायकी कल्याणमय स्थापित प्रणालिका सुदृढपन दीर्घकाल तक टिके और उनका समाश्रय करनेवाले अनेक जीवों का कल्याण हों, ऐसा उत्कट ध्येय के लिए मूल अक्षरमूर्ति सद्गुरु श्री गुणातितानंद स्वामीजी ने श्रीजी मान्य सिद्धांतों पर अत्यंत बलवतर भाषामें उपदेश दिया है । इतना ही नहीं किन्तु इस उपदेश प्रवाह को अस्खलित रूप से बहाया भी है। स्वामीजी की उपदेश शैली सरल थी फिर भी वह सचोट, मर्मभेदक और दमदार भी थी । उन्हीं से आकर्षित होकर देश-देशांतर के अनेक मोक्षार्थी उनसे आकर्षित होते थे । उन्होंने सत्संग की निष्काम सेवावृत्ति को जीवंत रखकर, संसार की वासना को निर्मूल कर के सर्वोपरि उपास्य भगवान श्री सहजानंद स्वामी को सब के कारणरूप दिखाकर उसमें जीवों को जोड देने की आत्यंतिक कल्याण कामना को ही प्रधान रखी है और उसके लिए आज्ञा और उपासनारूप सत्संग के दो प्रधान पहलूओं को बहुत ही महत्त्व दिया है ।
फिर दोनों पहलूओं की सिद्धि के लिए सत्पुरुष, सत्शास्त्र का संग, आत्मविचार और परमात्मनिष्ठा का प्रतिपादन कई सचोट द्रष्टांतों से किया है । श्रीजी महाराज का सांगोपांग अभिप्राय अनुसार धर्म, ज्ञान, वैराग्य और माहात्म्य सहित भक्ति का समन्वयरूप एकान्तिक धर्म है । उनका श्रेष्ठ अनुसंधान इन बातों में सतत रहा है एकान्तिक धर्म के अंगो की प्रसंगोपात बातों में स्वामीश्रीने स्पष्ट रूप में बहुत बातें को तोड-फोडके अलमस्त रूप से कह भी दी है और इन में इष्टदेव भगवान श्रीस्वामिनारायणकी सर्वोच्च उपासना तथा सत्संग की विशुद्धि के लिए उनका सदाग्रह कभी तो पुण्य प्रकोप के स्वरूप में दीख पडता है ।
अंतमें जीवों के ‘निजात्मानं ब्रह्मरूपं’ यह सिद्धांत अनुसार शुद्ध अक्षरात्मक और प्रकट पुरुषोतम नारायण श्री सहजानंद स्वामीके विशुद्ध उपासक बनाकर आत्यंतिक मोक्षके अधिकारी बनाने का अविरत उद्यम इन बातों में पूरी मात्रा में है” ।
जनहित के लिए उपयोगी इस सदग्रन्थ का हिन्दी भाषा में अनुवाद हैदराबाद के प्रमुख संत पुराणी श्री देवप्रसाददासजी मार्गदर्शन अनुसार शास्त्री श्री कृष्णचरणदासजीने किया है और शुद्धिकरण एवं प्रुफ की सेवा श्री स्वामिनारायण गुरुकुल विद्यालय राजकोट के उत्साही हिन्दी शिक्षक श्री जयंतिभाई के. ठुम्मर साहबने एवं बेंगलुरु के हिन्दी शिक्षक श्री क्रिष्णपालसिंहकी सेवा भी प्राप्त हुई है । टाइपींग सेवा विमलकुमार काबरियाने की है । इस पुस्तक तैयार करने में साधु रसिकवल्लभदासजी और पार्षद जयदेव भगत की सेवा भी प्रशंसनीय रही। खोखरिया यश और सोजित्रा ध्रुमिल कम्प्यूटर टाइप सेटींग में सहायक रहे । तभी इस ग्रंथका प्रथम आवृत्तिके रूपमें प्रकाशन संभव हुआ । इस प्रकाशन में शायद कोइ क्षति मालूम हो तो क्षमा याचना ।


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